Best 60+ Geeta Quotes In Hindi & Images in 2024

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Geeta Quotes In Hindi Download

जिस प्रकार मनुष्य अपने पुराने वस्त्रों को त्यागकर नये वस्त्र को धारण करता है, ठीक उसी प्रकार आत्मा पुराने तथा व्यर्थ के शरीरों को त्यागकर नए भौतिक शरीर को धारण करता है।

. मैं किसी का भाग्य नही बनाता हर कोई अपना भाग्य खुद बनाता हैं। आप आज जो भी कर्म कर रहे हों, उसका फल आपको कल प्राप्त होगा, और आज जो आपका (भाग्य लक) हैं वह आपके द्वारा पहले किये गये कर्मों का फल हैं।

मनुष्य नही उसके कर्म अच्छे या बुरे होते हैं और जैसे मनुष्य के कर्म होते हैं, उसे वैसे ही फल की प्राप्ति होती है।

तुम्हें सिर्फ अपने कर्म करने का अधिकार है, किन्तु कर्म के फलों के तुम अधिकारी नहीं हो। तुम न तो कभी अपने आपको अपने कर्मों के फलों का कारण मानो, न ही कर्म न करने में कभी आसक्त होओ।

सही कर्म वह नहीं है जिसके परिणाम हमेशा सही हो, अपितु सही कर्म वह है जिसका उद्देश्य कभी गलत ना हो।

संसार में कोई भी मनुष्य सर्वगुण सम्पन्न नहीं होता, इसलिए कुछ कमियों को नजरंदाज करके रिश्ते बनाए रखिये

कोई कुछ भी कहे, बस अपने आपको शांत रखो, क्योंकि सूरज कितना भी तेज क्यों न हो, समुद्र सूखता नहीं है।

जब तक शरीर है तब तक कमजोरियां तो रहेगी ही इसलिए कमजोरियों की चिंता छोड़ो और जो सही कर्म है उस पर अपना ध्यान लगाओ..!

अर्जुन तुम भला क्यों रोते हो? तुमने जो खोया, क्या वह तुमने पैदा किया था। आज जो तुम्हारा है वह कल किसी और का होगा। क्योंकि परिवर्तन ही संसार का नियम है।

किसी का अच्छा ना कर सको तो बुरा भी मत करना क्योंकि दुनिया कमजोर है लेकिन दुनिया बनाने वाला नहीं..!

यदि कोई व्यक्ति विश्वास के साथ इच्छित वस्तु को लेकर नित्य चिंतन करता है, तो वह जो चाहे वह बन सकता है।

तुम्हारे साथ जो हुआ वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है वो भी अच्छा है और जो होगा वो भी अच्छा होगा।

जिसने मन को जीत लिया है, उसने पहले ही परमात्मा को प्राप्त कर लिया है, क्योंकि उसने शान्ति प्राप्त कर ली है। ऐसे मनुष्य के लिए सुख-दुख, सर्दी-गर्मी और मान-अपमान एक से है।

सच्चा धर्म यह है कि जिन बातों को इंसान अपने लिए अच्छा नहीं समझता उन्हें दूसरों के लिए भी प्रयोग ना करें..!

कोई भी व्यक्ति अपने विश्वास से बनता है। वह जैसा विश्वास करता है, उसी अनुरूप बन जाता है।

मन अशांत है और उसे नियंत्रित करना कठिन है, लेकिन अभ्यास से इसे वश में किया जा सकता है।

मन की शांति से बढ़कर इस संसार में कोई भी संपत्ति नहीं है।

जो मनुष्य फल की इच्छा का त्याग करके केवल कर्म पर ध्यान देता है, वह अवश्य ही जीवन में सफल होता है।

जो दान कर्तव्य समझकर, बिना किसी संकोच के, किसी जरूरतमंद व्यक्ति को दिया जाए, वह सात्विक माना जाता है।

गीता में लिखा है जब इंसान की जरूरत बदल जाती है तब इंसान के बात करने का तरीका बदल जाता है।

इस सम्पूर्ण संसार में अपकीर्ति मृत्यु से भी अधिक खराब होती है।

सदैव संदेह करने वाले व्यक्ति के लिए प्रसन्नता ना इस लोक में है ना ही कहीं और।

जीवन में सफलता का ताला दो चाबियों से खुलता है। एक कठिन परिश्रम और दूसरा दृढ़ संकल्प।

जो मन को नियंत्रित नहीं करते उनके लिए वह शत्रु के समान कार्य करता है।

ईश्वर, ब्राह्मणों, गुरु, माता-पिता जैसे गुरुजनों की पूजा करना तथा पवित्रता, सरलता, ब्रह्मचर्य और अहिंसा ही शारीरिक तपस्या है।

इंसान हमेशा अपने भाग्य को कोसता है यह जानते हुए भी कि भाग्य से भी ऊंचा उसका कर्म है जिसके स्वयं के हाथों में है।

व्यक्ति को आत्म ज्ञान के माध्यम से संदेह रूपी अज्ञानता को समाप्त करना चाहिए।

मै उन्हे ज्ञान देता हूँ जो सदा मुझसे जुड़े रहते है और जो मुझसे प्रेम करते है ।

सत्य कभी दावा नहीं करता कि मैं सत्य हूं लेकिन झूठ हमेशा दावा करता हैं कि सिर्फ मैं ही सत्य हूं।

परिवर्तन संसार का नियम है समय के साथ संसार मे हर चीज परिवर्तन के नियम का पालन करती है ।

हे अर्जुन! परमेश्वर प्रत्येक जीव के हृदय में स्थित है।

व्यक्ति अपने स्वभाव के अनुरूप ही अपना लक्ष्य बनाता है। भागवत गीता

कर्म करो फल की चिंता मत करो।

दिल से किया गया प्रयास कभी विफल नहीं होता।

दुख और सुख को समान मानकर इससे विचलित ना होने वाले ज्ञानी होते है ।

भगवद गीता के अनुसार नरक के तीन द्वार होते है, वासना, क्रोध और लालच।

जिस प्रकार से प्राकृतिक मौसम में बदलाव आता है। ठीक उसी प्रकार से, जीवन में भी सुख दुख आता रहता है। वह कभी स्थाई नहीं रहते हैं।

इस जीवन मे ना कुछ खोता है , ना व्यर्थ होता है ।

जो लोग परमात्मा को पाना चाहते है, वह ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं।

भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि मैं इस संसार की सुगंध हूं, अग्नि की ऊष्मा हूं और समस्त जीवित प्राणियों का आत्म संयम हूं।

बुद्धिमान व्यक्ति कभी भी कामुक सुख में आनंद लेते हैं। वह सदैव मोक्ष की प्राप्ति में लगे रहते हैं।

हे अर्जुन ! हम दोनों ने कई जन्म लिए हैं, मुझे याद हैं, लेकिन तुम्हे नहीं

हे अर्जुन ! जो कोई भी जिस किसी भी देवता की पूजा विश्वास के साथ करने की इच्छा रखता है, मैं उसका विश्वास उसी देवता में दृढ कर देता हूँ।

हे अर्जुन, मैं धरती की मधुर सुगंध हूँ, मैं अग्नि की ऊष्मा हूँ, सभी जीवित प्राणियों का जीवन और सन्यासियों का आत्मसंयम भी मैं ही हूँ।

हे अर्जुन! मन की गतिविधियों, होश, श्वास, और भावनाओं के माध्यम से भगवान की शक्ति सदा तुम्हारे साथ है।

हे अर्जुन! जो मन को नियंत्रित नहीं करते उनके लिए वह शत्रु के समान कार्य करता है।

काम, क्रोध और लोभ – ये तीन आत्मनाशक नरक के द्वार हैं अतएव इन तीनों का त्याग करना चाहिए।

मनोरथ, मोह जाल व विषय भोगों से जुड़े व्यक्ति अपवित्र नर्क में जाते हैं।

दोष युक्त होने पर भी स्वाभाविक कर्म नहीं त्यागना चाहिए क्योंकि सभी कर्म दोष के द्वारा उसी प्रकार आवृत है जिस प्रकार आग धुएं के द्वारा।

जिस प्रकार सर्वत्र अवस्थित आकाश सूक्ष्म होने के कारण लिप्त नहीं होता है, उसी प्रकार संपूर्ण देह में अवस्थित परमात्मा भी देह के गुण दोष आदि से लिप्त नहीं होते हैं।

जो भक्तिमान मनुष्य शत्रु-मित्र, मान-अपमान, शीत-उष्ण, सुख-दुख में समभाव है; जिनकी वाणी में संयम है; जो कुछ प्राप्त होता है उसी से संतुष्ट रहते हैं, गृहासक्ति रहित तथा स्थिर बुद्धि वाले हैं; वह मेरे प्रिय हैं।

शरीर बाल्यावस्था से तरुणावस्था और फिर वृद्धावस्था में निरंतर अग्रसर होता रहता है, और उसी प्रकार मृत्यु होने पर आत्मा दूसरे शरीर में चली जाती है।

जो व्यक्ति सुख तथा दुख में विचलित नहीं होता अर्थात सुख – दुःख में संभाव रखता है, वह निश्चित रूप से मुक्ति के योग्य होता है।

किसी और के जीवन की नकल को पूर्णता के साथ जीने की तुलना में अपने भाग्य को अपूर्ण रूप से जीना बेहतर है।

जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर नए वस्त्र धारण करता है, इसी तरह आत्मा भी पुराने तथा व्यर्थ शरीर को त्याग कर नया शरीर धारण करती है।

आत्मा न तो किसी शस्त्र द्वारा खण्ड – खण्ड किया जा सकता है, न अग्नि द्वारा जलाया जा सकता है, न ही आत्मा को जल गीला कर सकता है और न ही हवा द्वारा सुखाया जा सकता है। आत्मा सदैव शाश्वत, सर्वव्यापी, अविकारी, स्थिर तथा सदैव एक सा रहने वाली है।

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